जानिये क्यों शिवलिंग के ऊपर रखा जाता है एक-एक बूंद टपकने वाला पानी का कलश*

बुधवार ।। रोहित संवाद न्यूज़ 

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लखनऊ ।  सभी ने शिलालेखों में शिलालेख के ऊपर एक कलश रखा देखा होगा, जिसमें 24 घंटे एक-एक बूंद पानी गिरता है। ये देखकर कई बार मन में सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों किया जाता है? यहां जानें यह धार्मिक और वैज्ञानिक कारण:-

कलश में पानी की एक बूंद दिखाई देती है। इसके अलावा चित्र में जल उत्पादक नलिका, जिसे जलाधारी कहा जाता है, उसकी भी प्रतिमा के दौरान लंघा नहीं जाता है। ये नजारा देखने के बाद मन में ये देखने की उत्सुकता कभी न कभी जरूर उभरी होगी कि आखिर ऐसा क्यों हुआ? 

आइए हम आज जानते हैं कि 24 घंटे जल की बूंद का रहस्य क्या है और शिवलिंग की जलाधारी को लंघना क्यों वर्जित है?

यदि धार्मिक आस्थाओं पर नजर डाली जाए तो इसका संबंध समुद्र तट से किया गया है। समुद्र तट के बीच हलाहल विष निकलने के बाद महादेव का नीला रंग चढ़ गया और उनके शरीर में बहुत ज्यादा जलन हो रही थी। उनकी मस्त हॉट हो गयी थी. तब उनके सिर और चेहरों को ठंडक की सलाह के लिए उनके ऊपर जल चढ़ाया गया। इससे महादेव के शरीर को थोड़ी ठंडक मिली। तब से महादेव को जलाभिषेक अत्यंत प्रिय हो गया है। इसिलिए महादेव के भक्त अपनी पूजा के दौरान जलाभिषेक अवश्य करते हैं, जहां महादेव को ठंडक के भाव से लेकर लिंग पर कलश स्थापित किया जाता है, जिससे 24 घंटे तक बूंद-बूंद करके जल टपकता रहता है। पर ये कलश गर्मी कई दिनों से रखी जाती है। ऐसा माना जाता है कि जो भी भक्त पानी का कलश स्थापित करता है, उसका एक पौधा के साथ हर संकट दूर हो जाता है।

*वैज्ञानिक कारण जानकर हैरान रह जाएंगे*:-

अगर वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो ये बहुत ही शक्तिशाली प्राणी है। यह स्पष्ट हो चुका है कि वैज्ञानिक वैयक्तिक तकनीशियन के रूप में काम करता है। यदि हम भारत के रेडियो सक्रियता से जुड़े लोगों को देखते हैं तो कृपया बताएं कि भारत सरकार के फ्रीडम रिएक्टर के अलावा सभी ज्योतिर्लिंगों के स्थानों पर सबसे अधिक रेड चर्च पाए जाते हैं। एक भाषा एक रेडियो रेडियो रिएक्टर की तरह एक्टिवा एनर्जी से भरी होती है। इस प्रलयकारी ऊर्जा को शांत रखने के लिए ही हर लिंग पर जल चढ़ाया जाता है। वही अधिकांश मठों में कलश में जल स्थापित करने के लिए ही मूर्तियों के ऊपर रखा जाता है। यह गिरती एक ड्रॉपलिप को शांत रखने का काम करती है।

*इसलिए लंबी नहीं चली जलाधारी*

इसके अलावा सभी पौराणिक कथाओं और देवताओं की पूरी मूर्तियां हैं, लेकिन शिवलिंग की चंद्राकार मूर्तियां हैं यानी शिव के भक्त उनके जलाधारी को लंघते नहीं, कहीं से वापस लौट आते हैं। इसके पीछे वैज्ञानिक कारण यह है कि शिवलिंग पर चढ़े पानी में भी रेडियो एक्टिव एनर्जी सेपरेटिटी हो जाती है। ऐसे में इसे लंघने पर एनर्जी से भरपूर किया जाता है। इसके कारण से व्यक्ति को वीर्य या रज संबन्धित फिजियोलॉजिकल माइक्रोस्कोप का सामना भी करना पड़ सकता है। तर्कशास्त्र में जलाधारी को लंघना घोर पाप माना गया है।

ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिम पुष्टि वर्धनम्, उर्वारुकमिव वन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।


दा0 कर्नल आदि शंकर मिश्र 'आदित्य', 

'विद्यावाचस्पति', लखनऊ

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